आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

गुरुवार, 5 जून 2014

कैसा पर्यावरण ?
व्यक्तिगत रूप से मै किसी भी दिवस को मनाने का पक्षधर नहीं रहा क्यूंकि बुद्धि के पागल लोग इन दिनों में अपने अंदर के भरे सारे कूड़े कचरे को निकाल देते हैं और इनके चक्कर में करोङो का खेल हो जाता है । मेरी एक सलाह- घर के विशुद्ध हिन्दू संस्कार को पुन : स्थापित करिये फिर इन दिनों की जरुरत ही नहीं होगी। .... तब बहस नहीं समाधान होगा............ डॉ. रत्नेश त्रिपाठी

रविवार, 1 जून 2014

1.  घर की औरतें बच जाएँगी उस दिन 
     शर्म का बीज वापस घरों में जब बोया जाएगा


2.  दर्द आकाश से उतर के नहीं आता है 
     कोई अपना ही कारण बन जाता है....... ...... डॉ रत्नेश त्रिपाठी  

शनिवार, 31 अगस्त 2013

अपना देश प्रजातान्त्रिक देश है ही नहीं ये बात खेलों के मध्यम से भी समझा जा सकता है । हाकी, फ़ुटबाल, बालीबाल, कबड्डी आदि आदि खेल प्रजातान्त्रिक खेल हैं जिसमे सभी खिलाडियों की समान सहभागिता होती है … वहीँ क्रिकेट को देखिये ये राजतंत्रात्मक खेल है जहाँ हर कोई किसी एक को खेलते देखना चाहता है.………और ये सब जानते हैं की क्रिकेट ही एक मात्र खेल देश में सुरक्षित है .बाकि खेल तो संरक्षण की सूचि में आ चुके है या विलुप्त हो चुके हैं …… 
इसलिए आज भी देश पर विदेशी राज कर रहे हैं क्यूंकि हमारी मानसिकता ही दूषित हो चुकी है। …और हम संरक्षण की सूचि में आ चुके हैं.…… देश में राज कर रहा राजपरिवार हमारी रोज बैंड बजा रहा है। …… प्रजातांत्रिक खेल नष्ट हो रहे हैं और राजतंत्रात्मक खेल फलफूल रहे हैं। …… डॉ रत्नेश त्रिपाठी

सोमवार, 29 अप्रैल 2013


  • भारतीय संसद कमजोरों का अड्डा बन चुकी है ..सरकार इतनी निकम्मी है की देश को लूटने और खुद को बचाने में लगी हुयी है ...ऐसे में पकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और यहाँ तक की अब नेपाल भी भारत को घुड़की दे रहा है ....जिसका परिणाम ये है की भारत की इस कमजोरी का फायदा उठाकर चीन भारत की सीमा में घुस आया है और उसकी दादागिरी से भारतीय संसद डरी हुयी है.....नामर्द नेताओं के कारण ...........ये है समस्या ...
    एक भारतीय नागरिक होने के कारण हमारे भी देश के प्रति कुछ कर्तव्य बनते हैं.....पहला कर्तव्य तो यही बनता है की हम चीनी सामानों का विरोध करें और उसका बहिष्कार करें...............
    दूसरा ये कि अगर संभव हो तो हर रोज अपने सांसद और प्रधानमन्त्री तथा राष्ट्रपति को एक पोस्टकार्ड लिखकर इस समस्या का जबाब मांगे ....
    दो कदम देश के लिए बढाईये.........जब हम सुधरेंगे तभी देश के हालात सुधरेंगे .....

मंगलवार, 15 जनवरी 2013

प्यार भरे शब्दों से कभी तन्हाई मै भी लिखता था
झूम झूम के गोरी की अंगडाई मै भी लिखता था
पर जबसे मुड़के भारत माँ के सपनों को देखा है
जब से मैंने इसके आँचल में नागों को देखा है
अब याद नहीं रहती तन्हाई गोरी की अंगडाई भी
जबसे यौवन की पीढ़ी को राह भटकते देखा है
अब मै फिर वापस लौटूंगा माँ का कर्ज निभाने को
हे देश के यौवन तुम भी क्या आओगे साथ निभाने को ........रत्नेश

बुधवार, 2 जनवरी 2013

जागो ! अब तो जागो !

अभी इण्डिया (भारत नहीं) के और विश्व के दाद खाज खुजली  टाईप के सारे संघठन जाग उठे हैं और एक सुर में भारत की बुराई कर रहे हैं और भारत को बदनाम कर रहे हैं ............क्यूँ ?  जरा विचार कीजिये :-
१- समाज सुधार का अगर इन्होने वीणा लिया है तो समाज की ऐसी दुर्गति के सीधे जिम्मेदार क्या ये नहीं  हैं? ....इन्हें पहले अपने को दोषी मानना होगा |
२- भारत को बदनाम करके इन्हें तो बहुत कुछ हासिल होगा लेकिन भारत को बदनामी के सिवा क्या मिलेगा ?
३- वर्त्तमान की सरकार ऐसी स्थिति को बढ़ावा क्यूँ दे रही है ...कहीं इनका उद्देश्य भारत की छवि को धूमिल करना तो नहीं है ? और इसी बहाने अपने दुष्कर्मों को छिपाना तो नहीं चाह रही !
४- क्या आपको नहीं लगता है की (आम जनता को छोड़कर) सरकार या विदेशी और सरकारी पैसे पे पलने वाले दाद खाज खुजली टाईप के संस्थाएं इस देश को निम्न स्तर पे देखना चाहती हैं ? ताकि इनकी दुकानदारी चलती रहे |
       मुझे लगता है की हमें इनसे इन्साफ मांगने की बजाये खुद ही सुधार की पहल करनी चाहिए | और उस सुधार की पहली सीढ़ी है परिवार और परिवार के संस्कार |    .........जरा सोचिये ....
डॉ. रत्नेश त्रिपाठी    

गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

सच जो हम भूल गए हैं !
भारतीय जीवन दर्शन जिसे संबोधन में हिन्दू धर्म कहा जाता है ..वर्तमान में उसको समझने की बहुत आवश्यकता है..आज हम अपनी नासमझी कहें या जबरजस्ती की बुद्धिमानी .....अपने धर्म से विमुख हो चुके हैं ...कुछ बिंदु जिसपर ध्यान दिया जाना परम आवश्यक है .........
१-   यह देश अपनी मूल संस्कृति से मातृ पूजक है ....इस बात को सिद्ध करने के लिए स्वयम भगवान शंकर अर्धनारीश्वर का रूप अपनाते हैं | शक्ति की पूजा के बाद ही श्रीराम रावण को मार सके | इसलिए बाहरी आक्रमणकारियों के द्वारा खंडित भारतीय समाज में जो दोष आये उसकी देन हमारी सनातन संस्कृति कभी नहीं रही ....इस बात को समझ लेना आवश्यक है |
२- इस देश में नारी के सभी रूपों की पूजा का विधान है ...एक भारतीय (मूल हिन्दू) छोटी बच्ची में अपनी बेटी का दर्शन करता है, अपने समतुल्य को बहन, और अपने से बड़ी स्त्री में माँ के रूप का दर्शन करता है | विश्व की अन्य किसी मानव निर्मित धर्म में ऐसा नहीं देखने को मिलता है , बाकी सभी जगह नारी केवल भोग की वस्तु भर है | हमें ये समझ लेना होगा की अपने धर्म से विमुख होने का ये परिणाम है की संस्कारों के इस देश की ये दुर्गति हो रही है |
३- मूल भारतीय शिक्षा पद्धति हमेशा शोधात्मक रही है जिसमे अपनी बुद्धि के अनुसार व्यक्ति समाज का अंग होता था | लेकिन हम आज केवल जबरजस्ती की पढाई जिसमे पैसा कमाना ही मूल उद्देश्य है ...ग्रहण कर रहे हैं ....यहाँ तक की हमारे वर्तमान शासक नैतिक शिक्षा की जगह यौन शिक्षा दे रहे हैं | हम अपने धर्म से विमुख है इसलिए इसे स्वीकार कर रहे हैं |
४- विदेशी संस्कृतियों के जाल में फंसकर हम अपने मूल हिन्दू धर्म में ही बुराईयाँ ढूंढ़ रहे हैं ....जबकि हमारा काम अपनी हिन्दू संस्कृति में आये विदेशी प्रभाव को दूर करना है जिससे की हम पुन: विश्व के शिक्षक बन सकें |
५- हमें यह समझ लेना होगा की यह राष्ट्र  किसी विदेशी सोच और संस्कृति पर आधारित  राष्ट्र नहीं है ....ये हमारा राष्ट्र है ...हमें इसे खुद सुधारना होगा ...हमें किसी विदेशी मानव निर्मित धोखेबाज और कुकर्मी संस्कृतियों की सीख नहीं चाहिए..........................शुरुआत खुद से करिए ...पुन: हिन्दू बनिए ....सारा विश्व निर्मल हो जायेगा ...और हमारा राष्ट्र पुन: विदेशी मानसिकता से मुक्त होगा ...................
.डॉ. रत्नेश त्रिपाठी